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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 313 हे राजन् ! आपके शत्रुओंसे रहित उनके स्फटिकमणिके राजमहलोंको मानवरहित देख कर जंगल के हाथी उनमें प्रवेश कर जाते हैं, स्फटिकमणिमें अपनी छाया देख कर उनसे वे भिड़ जाते हैं और तब तक टक्कर ले ते ही रहते हैं जब तब कि उनके बड़े बडे दात टूटकर गिर न जाते, बाद में अपने दाँत रहित छवि प्रतिबिम्बको देख, वे उन्हें हस्तिनी समझ, अपनी सूड उठाकर उन्हें चूमते हुए प्रेम करते हैं. इस प्रकार काव्यके रचयिता का परिचय कौन जानना नहीं चाहेगा ? यदि महान पंडित कालीदास का जीवन इतिहास पूर्ण रपसे . लिखा जाय तो संभव है कि एक महान ग्रंथ बन जाय तो कोई आश्चर्य नहीं. ग्रंथकार यहा उनका संक्षेप में परिचय देते हैं: राजकुमारी प्रियंगुमंजरी अपने चरित्रनायक महाराजा विक्रमादित्य को एक पुत्री थी, जिसका नाम प्रिय गुमंजरी था. राजकन्या बडी ही सुन्दरी थी. एक योग्य पिताकी संतान होने के नाते वह बचपन से ही बड़ी चतुर थी. इसकी स्मरणशक्ति बड़ी तीव्र और मधुरभाषी होने से प्रत्येक व्यक्ति को वह प्रिय लगती थी. जब प्रियंगुमंजरी आठ वर्ष की हुई तब महाराजाने पढ़ानेका प्रबन्ध किया. अपने नगरके महान विद्वान् पंडित श्री वेदगर्भको अपनी पुत्री के गुरुपद पर नियुक्त किये. वेदगर्भ एक प्रखर पंडित थे. सभी शास्त्रो के वे पूर्ण जानकार थे. . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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