________________ विक्रम चरित्र. छत्रसे ओर भी अधिक शोमा पा रहा है. जब महाराजा इस सिंहासन पर विराज कर राज्यकार्य करते हैं, तो उस समय उस सिंहासन के प्रभाव से महाराज की बुद्धि और भी अधिक प्रखर हो जाती है, इससे महाराजा को अपने प्रत्येक कार्यमें सफलता ही प्राप्त होती है... महाराजा का राजदरबार भी अनेक विद्वानांसे परिपूर्ण है. और होना ही चाहिए, कारण कि जो राजा स्वयं विद्वान है, वही विद्वानों का. आदर भी करना जानता है और विद्वान लोग भी ऐसे आश्रय की खोज किया करते हैं. भारत-प्रसिद्ध " नौ रत्न” महाराज की राजसभा की शोभा बढ़ा रहे हैं। जिसमें सुप्रसिद्ध कवि काली दास इन सब का शिरोमणि हैं। मादित्यके राज्य का वर्णन करते हुए कहा है, विद्वदजन निम्नलिखित काव्यसे भली प्रकार जान जाये गे कि कालीदास कितना महान विद्वान था और विक्रमादित्य महाराजा का राज्यकार्य कैसे चलता था। कवि कालीदामजीने कहा है, "वन्यो हस्ति स्फटिक घटिते, भित्ति मार्गे स्वविम्बम्, दृष्ट्वा दूरात्प्रतिगज इति त्वद्विषां मंदिरेषु हत्वा कोपाद्गलितरदनस्तं, पुनवर्वी क्षमाणो, मन्दं मन्दं स्पृशति करिणीशंकया साहसाङ्कः // स. 10/2 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust