________________ _ विक्रम चरित्र वाला छत्र प्राप्त हुआ. जिससे क्रमश: महाराजा को राज्यलक्ष्मी दिनोदिन. बढ़ने ही लगी. और आप नीति से प्रजा को पुत्रवत् पालन करने लगा. . पाठक गण ! आपने महाराजा द्वारा नागदमनी के पाँचों आदेशों के पालन का : रोमांचकारी हाल: पढ़ ही लिया है. इस नवमें सर्ग में पांच-दंड वाले छत्र की मनोहर कथा पढ़ कर आपने कई प्रकार के अनुभव प्राप्त किये होंगे. यह सब महाराजा के पुण्य बलका ही प्रताप है. इससे प्रत्येक व्यक्ति को अपना पुण्य बल प्राप्त करने के लिए यथा शक्ति धर्म-ध्यान में मन लगा कर पुण्य संचित करना चाहिए, धर्म वधन्ता धन वधे, धन वधे मन वध जाय / मन वधे मनसा वधे, बघत बघत बघ जाय // . तपगच्छीय-नानाग्रंथ रचयिता कृष्ण सरस्वती बिरुदधारकपरमपूज्य-आचार्य श्री मुनिसुंदरसूरीश्वर शिष्य पंडितवर्य श्री शुपशीलगणि-विरचिते श्री विक्रमादित्य विक्रमचरित्र-चरिते पञ्चदण्डवर्णनो . नाम नवमः सर्ग समाप्तः नानातीर्थोद्धारक-आघालब्रह्मचारि-तपोगच्छाधिपति शासनसम्राट श्रीमधिजयने मिसूरीश्वरशिष्य-कविरत्न शास्त्रविशारद-पीयूषपाणि जैनाचार्य श्रीमद् विजयामृत सूरीश्वरस्य तृतीयशिष्यः ...वैयावच्चकरणदक्ष मुनिवर्य श्री खान्तिविजयस्तस्य / शिष्य मुनि निरंजनविजयेन कृता विक्रम. यरितस्य हिन्दीभाषायां भावानुवादः..... तस्यच नवमांसर्ग समाप्तः // द्वताय-भाग-समाप्त P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust