________________ 308 .. विक्रम चरित्र हुई नागपुत्रोंको देखनेके लिये श्रीदके घर पहुँची. वहाँ अग्निवेतालकी सहायतासे विक्रमादित्य पुनः बटुकका रूप धारण कर बैठा था. वहीं मायनमें माताके घरमें विवाह करते हुए बटुकको देखकर इन्होंने कहा, "हमलोगोंका दण्ड आदि समान लेकर हमें ठगकर यहाँ आकर भारी संकट डाल दगी ?" यह सुनकर विक्रमादित्य अपने असल रूपमें प्रगट हो गया. विक्रमादित्यको देखकर वे सब कन्यायें ताज्जुब सी हो गई और लज्जित होकर कहने लगी कि "हम लोगोंसे भी पाणिग्रहण कर लो, " श्रीद श्रेष्ठि भी विक्रमादित्यको देखकर अति प्रसन्न महाराजा का सुरसुन्दरी से विवाह - नागकुमारों के पिताने कहा, "कृपया हमारे कुमारों को प्रगट कर, दो.” यह सुनकर दयाल राजाने वेताल की सहायता से नागकुमारों को नाम की कन्या को मणि दंड के साथ राजा विक्रम को समर्पित कर दी. - चन्द्रचूड नागकुमारने कहा, "हे राजन् , लक्ष्मी के समान . गुणवाली कमला नामक मेरी कन्या को आप स्वीकार कर लो.” राजाने वह कन्या स्वयं न लेकर नागकुमार को दिलवा दी. इस प्रकार पांच स्त्रियों के साथ पाणि ग्रहण करके मनोहर विषनाशक भूस्फोटक और मणिदंड को लेकर वहांसे चलदिया. * भूमिस्फोटक दंड के प्रभाव से पाताल नगर से उत्सव के साथ भवन्ती में आगया. वहाँ आकर राजाने तीनों. दण्ड नागदमनी को दे दिये. नागदमनीने उन पांचों दण्डों से अच्छा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust