________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जन विजय संयोजित , 307 तालिका चौसठ योगिनियोंके साथ नृत्य कर रही है. हरितालिकाके क्रीडा कर लेने पर वे तीनों एक वृक्ष पर चढे और इन दोनोंके साथ हरितालिका और योगिनियों हुंकार करती हुई आकाश मार्गसे स्वर्णद्वीपमें गई. वहाँ वनमें क्रीडा करके कुछ दूर आगे जाकर वज्रदंडसे आघात करके पृथ्वीको फोड दिया तथा पातालके विवर-बाम्बी द्वारमें विषनाशक दण्डसे सर्पो को दूर करती हुई और अत्यन्त भयानक सर्पो को हाथमें धारण करती हुई, उन दोनोंके साथ हरितालिका आदि सब पाताल नगरके समीप चली गई. . - वहाँ जाकर उन्होंने पुष्पको छाब और दोनों दण्ड बटुकको सोंप दिया और आप तीनों सरोवरमें स्नान करने गई. बादमें यहां पर विक्रम-बटुकने उन सब वस्तुओंको लेकर कौतुकवश पाताल नगरकी शोभा देखने चला गया. नागकुमार .सब नाना अलंकारोंसे भूषित होकर जलूस रूपमें बाजारमें आया; ठीक उसी समय बटुक भी वहाँ पहुँचा. विक्रमादित्य-बटुक अग्निवेतालकी सहायतासे नागकुमारोंको अदृश्य करके और स्वयं सुन्दर रूप बनाकर उसके मनोहर घोड़े पर सवार हो गया. हार, कंकण, आदि आभूषणोंको धारण करनेसे मानों एक नागकुमार सा ही दोखने लगा. और +मायनमेंलग्नचौरी मातुगृहमें जाकर 'श्रीद'की पुत्रीसे पाणिग्रहण कर लिया.' ... इधर हरिताली. आदि. तीतों.स्त्रियाँ जब स्नान करके बाहर आई तो बटुकको वहाँ नहीं देखा; अतः वे सब निराश होकर उसे खोजती मायनयाने मायरा-विवाहसे पहले मातृका और पितृनिमन्त्रणका कृत्य। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust