________________ 306 ..... विक्रम चरित्र जइतु कहने लगी, " पाताल में नाग श्रेष्ठि के पुत्रका विवाह आज रात्रि में बड़ी धूम-धामसे होगा. अत : नाग कुमार लोग एकत्रित होंगे वहीं मैं यह पुष्पों से भरी छाब लेकर जा रही हूँ." . हरितालीने कहा, "हे सखि, मुझे भी वहाँ निमंत्रण है. इसलिये "वसुधास्फोटनदण्ड' पृथ्वी को फोडनेवाला दण्ड लेकर बाहर उद्यानमें योगिनियों के साथ मैं कुछ काल तक क्रीडा करूंगी. अतः पुरोहित की गोमती नाम की कन्या को " विषनाशक"-विषापहार नामक दंड के साथ बुलाकर बाहर उद्यान में तुम आजाओ. वहाँ सब कोई मिलेंगें और बाद में चले जायँगे." यह कहकर हरिताली बाहर उद्यान में चली गई. .. जइतु पुरोहित के घर जा कर उस की कन्या को साथ लेकर पुष्पकी छाब लेकर जा रही थी परंतु फुल छाब के भारसे पीडित हो कर जइतु गोमतीसे कहने लगी, " यदि कोई बटुक मिलता तो इसे कुछ मेहनताना देकर यह छाब उठवाती." . यह सब सुनकर राजा विक्रमादित्य बटुकका स्वरूप लेकर उसके पास प्रगट हो गया. मालिनीने इसे देखकर कहा, "रे बटुक ! तुम इस भारको ले लो तो तुम्हें योग्य मजदूरी दिला दूंगी." महाराजाका बटुक वेष- ... ... बटुकने कहा, "मैं अपने मस्तक पर रख कर आपका सभी भार उठा लूंगा." बटुकसे इस प्रकार योग्य मेहनताना : ठहरा कर मालिनीने. अपने पुष्प छाब उसके सीर पर रख दिया. बादमें ये दोनों उद्यानमें चले गये जहाँ हरितालीका थी, वहाँ जाकर देखा तो हरि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust