________________ 303 साहित्यप्रेमी मुनि निरअनविजय संयोजित सुपात्र-दान। राजाने सुपात्र की परीक्षा के लिये प्रथम ब्राह्मणों को बुलवाये और पूछा, "तुम में से सुपात्र कौन है ?"' . ' ब्राह्मणोंने कहा, "हम सब सुपात्र ही हैं.' . राजाने पूछा, " आप लोगों को क्या क्या दान दिया जाय वह बतलाइये?" . - वे लोग कहने लगे, " लोग अपनी सद्गति के लिये, पृथ्वी, ___रत्न, पत्नी, गाय, यंत्र तथा मुशल आदि का दान देते हैं." , महाराजाने कहा, "जो तीव्र तपस्या करके ब्रह्मका अन्वेषण करते हैं, वे ही ब्राह्मण हैं, आत्मज्ञान के लिये चक्रवर्ती राजा भरतने जिनको स्थापित किया वे ब्राह्मण कहे जाते हैं. दूसरे नहीं, और .. पुराण में भी कहा है, कि ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण और शिल्प से शिल्पी होते है, अन्यथा गोकळगाय एवं इन्द्रगोपक नामके जन्तुके समान वह नाममात्र के लिये ही हैं." ये सब बातें सुनकर ब्राह्मण लोग अत्यन्त क्रुद्ध हो कर कहने लगे, " हे पापिष्ट ! आप ऐसा क्यों कह रहे हो. नागदमनी के संग से ही तेरी बुद्धि बिगड़ी हैं." इस प्रकार ब्राह्मणोंकी बातें सुनकर राजाने : विचार किया, 'ये ब्राह्मणलोग व्यर्थ ही अहंकार से भरे हुए हैं. ये अपने आपको बहुत बड़े मानने लग गये हैं. यदि देखा जाय तो . + “ब्राह्मणो ब्रह्मचयेंग यथा शिल्पेन शिल्पिनः / अन्यथा नाममात्र स्यादिन्द्रमोपक कीटवत्" // स. /56 // . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust