________________ 302 . : विक्रम चरित्र आम्रों के बीज लेकर मंत्री और अपनी स्त्रीके साथ राजा विक्रमादित्य / भी अपने नगरमें आया. और नागदमनी को बुलाकर आम्रों के बीज दिये तथा मत्रीश्वरको आदर सहित अपने प्राचीन पद पर स्थापित किया. इसके बाद राजा विक्रमादित्यने नागदमनी से कहा, " अब तुम अपना पंचम आदेश-काय का निर्देश करों." "सभी दानों में सुपात्र-दान सर्व श्रेष्ट कहा; . सन्मान पूर्वक देता-वही मोक्ष निदान कहा." इस संसारमें प्रचुर पुण्य एकत्र करना सभी प्राणियोंके लिये बहुत आवश्यक है, क्योंकि मजबुत नींवके सिवाय मकान भी नहीं टीकता है, तो फिर इस संसारमें सभी प्राणियों सुख प्राप्त करने चाहते है और वह सुख पुण्यके सिवाय ओर कोई प्रकार अपनी इच्छासे प्राप्त करना अशक्य है; इसी लिये महाराजा विक्रमादित्य तो. प्रथमसे ही बड़ी उदारतासे दान दे रहे थे, - तथापि नागदमनीने पंचम आदेशके रूपमें महाराजा विक्रमा- . दित्यसे नम्र निवेदन किया, "हे राजन् ! आप सर्व प्रकारके दानोंमें जो श्रेष्ट सुपात्र दान सर्वत्र प्रसिद्ध हैं वह सुपात्र दान अधिकतर रूपमें देना आरंभ करें." सुपात्र दान याने क्या ? सुयोग्य सदाचारसे युक्त जो सद्गुणी व्यक्ति हो उसको सन्मानपूर्वक दान देना उसीको सुपात्र दान शास्त्रम कहा गया. P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust