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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जन विजय संयोजित 299. राजा सभामें ही था. ऐन्द्रजालिकने राजा से कहा, 'अगर आप की आज्ञा हो तो अपना कौशल दिखाऊँ.' राजाने कहा, 'तुम अपना कौशल अवश्य दिखाओ.' * इस प्रकार राजा की आज्ञा पाकर ऐन्द्रजालिकने अनेक प्रकार के खेल करके अपना कौशल दिखाया, और इसने राजासे कहा, 'हे राजन् ! यदि आपकी रुचि हो तो नित्य फल देनेवाली आम की वाड़ी दिखा दूं.' राजाने कहा, ' इससे बढ़कर और क्या चीज देखने योग्य हो सकती है ?' इस प्रकार राजाकी उत्कट इच्छा देखकर ऐन्द्रजालिकने नित्यः फल देने वाले आमकी गुटिकाका रोपण करके आमकी वाड़ी बना दी, और इसके समीप एक रम्य पर्वत बनाया. वाटिकाके मध्यमें एक नदी प्रवाहित कर दी. नदीके जलसे वृक्षोंको सींच करके पत्र, पुष्पः और फलोंसे उसे परिपूर्ण किया. उपरोक्त विस्मयकारक कार्यको देख सभी लोग चकित हो गये. इस प्रकार सदा पके हुए फलबाले आमोंकी वाटिका बनाकर राजासे कहा, ' यदि आपकी आज्ञा हो तो इन आमोंके फलोंको शरीरकी पुष्टि के लिये आपके परिवारको ढूँ. 'दो' इस प्रकार राजाके कहने पर ऐन्द्रजालिकने आश्चर्य करनेके लिये उन लोगोंको दिया. उन फलोंको परिवार सहित खाकर राजा सोचने लगा, 'यदि इस ऐन्द्रजालिकको मार दूं तो यह सब योंही रह जाय' राजाने इस प्रकार सोचकर उसे मरवा दिया, और अपने सेवकोंको वाटिकासे फल लानेके लिये भेजा. जब वे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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