________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 297. विनयी पुत्र, उत्तम गुणोंसे युक्त पुत्रवधू, बंधु, प्रधान, उत्तम मित्र ये सब लोगों को धर्मके प्रभावसे प्राप्त हो सकते हैं. किसी ने ठीक ही कहा हैं कि'पविता स्त्री विनयी बालक भली वधू प्रेमी भाई; मित्र निच्छली धर्म किये पर मिलते हैं सब सुखदाई.' बराबर छ मास के अन्तमें एक दिन सियाल का शब्द सुनकर पुत्रवधूने कहा, " प्रातःकाल पूर्व दिशामें चन्द्र नाम के सरोवर पर राजा विक्रमादित्य तुमसे मिलेंगे इसलिये अभी सब कार्य को छोडकर उसके पास चले जाइये. अपनी बुद्धिमति पुत्रवधू के कथनानुसार मंत्रीश्वर शीघ्र तैयार हो कर, उस ओर चल दिया. विक्रमादित्य द्वारा मतीसार मंत्री का पुनः सन्मान इधर राजा विक्रमादित्य नागदमनी को बुलाकर पूछने लगा, "तुम अपना चतुर्थ आदेश कहो." नागदमनीने कहा, "हे राजन् ! रत्नपुर में शीघ्र जाकर अपने मंत्री मतीसार को सन्मानपूर्वक शीघ्र ही ले आओ" इस प्रकार राजा नागदमनी के कहने पर मंत्री को लाने उस ओर चल दिया. राजा जब चन्द्र नामके सरोवर पर पहुँचा तो ठीक उसी समय मतीसार मंत्री भी. उस के सामने हो आया. राजा मंत्री को बहुत आदर से भेट पड़े और खूब हर्षित हुआ. मंत्री ने महाराजा का भक्तिपूर्वक सन्मान किया. और। महाराजा को बहुत आदर सहित अपने घर ले आया. महाराजा विक्र-- मादित्य मंत्री की सम्पति देख कर चकित हो गया. __ राजा को आश्चर्ययुक्त देख कर मंत्रीने कहा, "आपकी कृपा और 1 निष्कपटी-निर्मल चित्तवाला. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust