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________________ .294 .. .. . विक्रम चरित रुदन मचाते हो ? यदि तुम मेरे घरमें कार्य करोगे तो तुम्हारा सब दुःख मैं दूर कर दूंगा." . - वृद्धने कहा, "मैं तुम्हारे कथनके अनुसार सब कार्य करुंगा. क्योंकि पथिक जिस किसीका क्या क्या कार्य नहीं करता ? किस किसको प्रणाम नहीं करता ? इस दुर्भर पेटके लिये सभी कुछ करना पड़ता है. पैदल मुसाफरी करने जैसा कोई कष्ट नहीं, क्षुधाभूख के समान कोई रोग नहीं है, मरणके समान कोई भय नहीं और दारिद्रयके समान कोई शत्रु नहीं है. "अधिक चले तो वृद्ध हो-भूख समान न रोग; मृत्यु बराबर भय नहीं-दारिद्र से बढ़ कर रोग." - इसके बाद वह पुरुषवेशधारी-कुमार उस वृद्ध को बराबर साधारण कार्य करने को कहता और अच्छा अच्छा भोजन देता था. इस प्रकार क्रमशः अपने पति आदि तीनों भाईयों को भी उसने अपने घरमें नौकर बनाकर उत्तम भोजन आदि देकर सुख से रखती थी. अपने परिवार को एकत्रित देखकर मतीसार मंत्री की पुत्रवधूने पुन : अपना स्त्रीका रूप बना लिया यह देखकर मतीसार अपने मनमें अत्यन्त चकित हो गया. - तब पुत्रवधूने पूछा, "हे तात! सवालाख मूल्य का रत्न तुम्हारे पास था, तो भी यह दुदर्शा तुम्हारी क्यों हुई?" ... मंत्री कहने लगा, "मैं मणि लेकर बाजारमें गया और कहा कि मेरे पास एक लाख का हीरा है." यह सुनकर झवेरीने कहा, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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