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________________ 290 ____ .... . विक्रम चरित्र इस तरह समय आनंदपूर्वक बीत रहा था, मंत्रीश्वर राज्य का कारभार बराबर कर रहे थे, महाराजा भी मंत्रीश्वर के उपर प्रसन्न रहते थे; सियाल की भविष्य वाणी को करीब छ मास बीतने आये. मंत्री मतीसार को देश निकाला :- बराबर छ मासके अन्तमें अकस्मात् मतीसार को बुला कर महाराजाने कहा, 'मुझको तुम राज्यका हिसाबवही बताओ, अन्य था मेरे राज्य से बाहर चले जाओ.' इस प्रकार राजा की आज्ञा मान कर जब मंत्री हिसाब देने लगा तब राजाने निष्कारण ही छल-कपट-से क्रुद्ध हो कर उस की सब संपत्ति ले ली और उस को अपनी राज्य की सीमाहदसे बाहर चले जाने की आज्ञा फरमाई. होता है राजाज्ञा-अनुसार अवंती छोड चला, किन्तु बुद्धिमती उसकी पुत्रवधू घर का सारभाग उन उपलों को समजकर वह लेकर घरसे निकली, और सभीने कुछ थोडासा सर सामान ले अपने नशीब के भरोसे चल पड़े. कोई कहते थे कि यह चतुर है इसलिये किसी मतलब से ही कण्डों को लेकर जा रही है. कोई कहते थे कि आज तक प्रजाको मंत्रीने अति कष्ट दिया है, उसी दुष्कर्म का यह फल हैकोई कहते थे कि यह मंत्री अत्यन्त भला है और इसने किसी को * भी दुःख नही दिया है, न जाने राजाने इसको देशनिकालका भयंकर दण्ड क्यों दिया ? कोई कहता कि सच ही आज कल भलाईका जमाना नहीं है? कोई कहते थे कि इस मंत्रीने इस जन्म में तो कोई पाप P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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