________________ 285 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित ___ पाठकगण ! आपने महाराजा विक्रमादित्यके द्वारा किये गये साहसपूर्ण कार्यका हाल पढा जो नागदमनीके द्वारा बताये गये. दूसरे आदेशके पालनके हेतु किया गया था., महाराजाने अपनी चातुरीसे किस प्रकार त्रेसठ विद्यार्थी और गुरुको बाल-बाल बचाकर उस विप्र .. पत्नी उमादेवीका सदाके लिये अंत कर दिया. . .. सच है कि एक पुण्यशाली सारी नावको तिरा देता है और एक पापी पूरी नावको डूबा देता है. धन्य है महाराजा विक्रमादित्यको जिसने अपनी जान खतरेमें डाल कर भी अनेक व्यक्तियोंकी रक्षा की हैं. किसीने ठीक ही कहा है. "जो पराये काम आये-धन्य है जगमें वही, द्रव्यही को जोडकर-कोई सुयश पाता नही." . अधिकारपदं प्राप्य नोपकारं करोति यः; . अकारो लोपमात्रेण ककारद्वित्वतां व्रजेत् // 1 // अधिकार कुं पायके-करे न पर-उपकार,... अधिकारमें से अ गया-बाकी रहा धिक्कार // 2 // . देखत सब जग जात है, थिर न रहे इहाँ कोय; इसुं जाणी भलं कीजिए, हैये विमासी जोय // 3 // अखियां खुली है जवलग, तब लग ताहरु सब कोय; . - अखियां मीचाणा पीछे, और ही रंग ज होय // 4 // ' जीवन-जोवन राजमद, अविचल रहे न कोय; जो दिन जाय सत्संगमें, जीवन का फल सोय // 5 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust