________________ 284 विक्रम चरित्र इसके बाद राजा विक्रमादित्यके उपकारसे और विलक्षण पराक्रमसे राजा विजयने समझ लिया, 'यह कोई असाधारण उत्तम पुरुष है.' फिर बादमें प्रसन्न होकर राजा विजयने आग्रह पूर्वक धामधूमसे उत्सव करके अपनी पुत्री चन्द्रावतीका. महाराजा विक्रमादित्यके साथ विवाह कर दिया. . इधर पंडितजी आदि सब छात्र इधर-उधर देखते हुए नगरमें राजाके महलमें पहुँचे. वहाँ राजाका उपकार करनेवाले और अद्भुत स्त्रीके साथ विक्रमादित्यको देखकर वे लोग अत्यन्त प्रसन्न हो गयें, उन्होंने राजाके चरणकमलमें सप्रेम प्रणाम किया. इसके बाद विक्रमादित्यने वैतालसे कहा, " शीघ्र जाओ और विप्रपत्नी उमादेवीका सोपारक नगरमें जाकर सब समाचार ले आओ." _महाराजाकी आज्ञानुसार अग्निवैतालने उमादेवीका हाल जानकर राजासे कहा, "योगिनी तथा क्षेत्रपालोंने उमादेवीको भक्षण कर लीयें है". .. राजा विक्रमादित्य राजा विजयको पूछकर पंडित, छात्र और अपनी प्रिया चन्द्रावतीके साथ अग्निवैतालकी सहायतासे पुनः सोपारक नगरमें आ पहुँचे. और पंडित तथा छात्रोंको बहुतसा द्रव्य देकर संतुष्ट किये. वहाँ इसके बाद जिन मंदिरमें जाकर श्री आदिनाथकी भावभक्तिसे स्तुति करके प्रसन्न हुआ. र बादमें महाराजा क्रमशः सोपारक नगरसे अवन्तीनगरीमें आया, 'वज्रदण्ड' और 'सर्वरसदण्ड' वे दोनों दण्ड नागदमनीको दे दिये. दण्डोंको देकर राजाने नागदमनीको कहा, ". अब छत्रके लिये मागेका कर्तव्य कहो." P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust