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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 283 12. 'कुत्सित बुद्धिसे राजा नष्ट हो जाता है. समय आजाने पर फल पकता है. जठराग्नि से अनाज पकता है और पापीजन अपने पाप से ही नष्ट हो जाता है.'+ ..... यह विस्मयकारक दृश्य देख कर राजकन्या विचारने लगी,. 'क्या यह कोई देव, कंदर्प अथवा राजा ही मेरी रक्षा करने आया है ?? - अग्निवैताल उस मरे हुए राक्षस के सब अंगोको खाकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ. चन्द्रावती राजकन्या भी राजाके पराक्रमको देख कर मन ही मन अत्यन्न प्रसन्न हुई. . श्रीपुर नगर का पुनः स्थापन: - इसके बाद राजाने अग्निवैतालसे कहा, "सब लोगों को ला कर इस नगरको फिरसे अभी का अभी बसा दो. इस नगर के राजा विजयको भी जहाँ हा वहाँसे शीघ्र ले आओं. यह राज्य उसे ही दे दूंगा." राजाकी आज्ञा प्राप्त कर के अग्निवैताल शीव्र ही राजा तथा प्रजाको लाने के लिये चल दिया और थोड़े ही समयमें उस नगरको पुनः पूर्ववत् बसा दिया. राजा विजय मनमें सोचने लगा, 'यह विस्मयकारक सब वृतान्त कैसे और किस तरह अति शीघ्र बन गया. यह जिज्ञासा पूर्ण करने कि अभिलाषा से महाराजा विक्रमादित्य से राजा विजयने पूछा, "आप कौन हो और कहाँ से आये है ? यह बात बताईये.” . न महाराजा विक्रमादित्य बोला, "आपको यह पूछनेसे क्या लाभ ? और क्या प्रयोजन है.", + “कुमंत्रैः पच्यते राजा-फलं कालेन पच्यते / अग्निना पच्यते चान्न-पापी पापेन पच्यते // सर्ग 9406 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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