________________ महाराजाने लोलुप धन्य किसान की कहानी सुनकर उसको द्रव्य . देकर सुखी किया. प्रकरण 59 . . . . . . , . . . . . प. 494 से 504 धन्य सेठ और रत्नमंजरी धमिष्ट धन्य सेठ की धर्मपत्नी उन्हों की अंतिम अवस्था में मर गई, पडोश में रहती हुई रत्नमजरी जो धर्म परायण थी, जो लग्न करना नहीं चाहती थी, उसी के दिल में धन्य सेठ की सेवा करने की इच्छा हुई, वह धन्य सेठ से मीली अपनी दिलकी बात कही, और अंत में लग्न किया. लग्न के वाद रत्नमजरीने धन्य सेठ की अनन्यभाव से सेवा की, उसकी प्रशंसा चोदिश होने लगी, महाराजा के कान तक पहोंची. महाराजाने परीक्षा लेने का विचार किया. प्रकरण 60 . . . . . . . . . . . . पष्ठ 505 से 513 रत्नमंजरी व महाराजा विक्रम महाराजा विक्रमादित्य मुसाफर का वेश लेकर धन्य सेठ के वहां आये रत्नमंजरीने उनका आतिथ्यसत्कार किया, रात को रहने की जगा दी. रात के समय रत्नमंजरी जो पति की सेवा कर रही थी उस को देख कर महाराजा मन ही मन प्रसंशा करने लगे. उसी समय द्रव्य हरण करने के लिये एक चोर श्रेष्ठि के घर में आया, उस को देखते ही रत्नमजरी का पाप उदय में आने से भावना द्वारा पतन हुआ, उसने चोरसे भोग की इच्छा प्रदर्शित की, चोर गभराया, उसने कहा, 'विवाहित पति के सामने वो असा नहि कर सकता, यह सुनते ही रत्नम जरीने अपने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust