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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 277 मणि महाराजा विक्रमादित्य इस नगर के विषय में जानना चाहते 3 उत्सुक थे; किन्तु बहुत समय तक वहाँ पर आता जाता कोई मानव नहीं मिला. . F. उस नगर के बहार उद्यानमें पण्डितजी और छात्रो को छोड़कर राजा नगर देखने गया. नगरमें प्रवेशकर निर्भय होकर चारों ओर घूमते घमते बड़ी बड़ी शून्य हवेलीयाँ और बाजारमें शून्य दूकानोंमें वस्तुसमूहों को देखता हुआ; महाराजा राजमहलमें आ पहुँचा. क्योंकि उत्तम मनुष्य कहीं भी जाते हैं, तो डरते नहीं है जैसे बलवान सिंह किसी भी पर्वत कन्दरा-गुहामें जाते हुए डरते नहीं है. +' ' ' ..... जब महाराजा विक्रमादित्यने उस राजमहलमें प्रवेश कर, राजमहलकी, बेनमून कला-कारीगरी का अवलोकन कर, आस-पासमें देखा तो कोई नोकर चाकर दिखाई नहीं दिया, , राजाने मनही मन सोचा कि इतना सुंदर राजमहल होते हुए कोई भी रक्षक क्यों नहीं है ? 'सुंदर कलात्मक और शून्य राजमहल देखते देखते महाराजा क्रमशः सिडी चढ कर राजमहल की सातवीं मंजिल पर जा पहुँचा, वहाँ एक कमरेमें अत्यन्त दिव्यरुप को धारण करनेवाली एक नवयौवना कन्या को देखा. देखकर राजा सोचने लगा, : यह कन्या एकाकी यहाँ क्यों है? अथवा किसी नगरमें से कोई राक्षस इसे हरण कर यहाँ लाया होगा ? रूप और आकार से निश्चय यह कोई राजकन्या सी मालुम पड़ती है! + " नरोत्तमा हि कुत्रापि वजन्तो गिरिगह्वरे / . न बिभ्यन्ति मनाक् सिंहा इव सारबलोत्कटाः " // स. 9/359 // . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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