________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 275 वह सब छात्रों के साथ तुम भी शंका रहित हो कर करना. क्यों कि विद्वानोंने शंका को महाविष कहा है. यह तुम्हारी स्त्री जो कुछ करना चाहे वह करे!'' इस प्रकार सब छात्रों को भी समझा दिया. . दूसरे दिन प्रातःकाल उमादेवीने पण्डितजी से कहा, "हे स्वामिनाथ ! आज कुलदेवीने स्वप्नमें मुझको कहा कि इस चतुर्दशी के दिन यदि तुम चौसठ छात्रों के साथ अपने स्वामी को बलिदान को श्रेष्ट विधिसे भोजन नहीं कराओगी, तो सब छात्रों का और तुम्हारे पतिदेव का भी मरण होगा." .. पण्डितजीने कहा, "हे प्रिये! अपने प्यारे छात्रों को आदरपूर्वक अवश्य भोजनादि कराओं, इससे क्या अधिक है?" ... ...: चतुर्दशी का दिन निकट आने पर उमादेवी जो कुछ सामग्री माँगती वे सब वस्तुों उस को पण्डित ला देता था...... ....... फिर बादमें पैंसठ मण्डलों पर क्षेत्रपाल द्वारा बताई हुई, विधि के अनुसार उमादेवीने सब छात्रों के सहित सोमशर्मा को भी बैठाकर 'सर्वरस'. नाम के दण्ड को पृथ्वी पर रखा और हाथमें जलपात्र लेकर, जब अर्घ्य देने लगी-जल छांटने लगी. तब महाराजा विक्रम उठा और उठकर वह 'सर्वरस दण्ड' ले कर वहाँसे भाग चला. पण्डितजी और सभी छात्रों से युक्त राजाविक्रम के पीछे पोछे उमादेवी भी कुछ दूरी तक भागी, किन्तु वे सब लोक बहुत दूर निकल गये थे, उन लोगों से मिलना असंभव देख, वह निराश हो कर पुनः 'अपने घर को ओर लौट आई. , 56 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust