________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 273. ___.. विक्रमादित्यने कहा, " इस कृष्ण चतुर्दशी के दिन आपका मृत्यु है, और हम चौसठ विद्यार्थीओं का भी तुम्हारे साथ साथ मृत्यु निश्चित है; अर्थात् अपने पेंसठ व्यक्तियों का ही योगिनी एवं क्षेत्रपालो को बलिदान दिया जानेवाला है." यह सुनकर पण्डित सोमशर्मा कुछ . घबराया. बादमें महाराजा विक्रमने पण्डितजीको धैर्य धारण करने कहा और उमादेवीके साथ द्वीपगमन, चौसठ योगिनीयों तथा बावन क्षेत्रपालोंके 'पास जाना और वहाँ क्षेत्रपालका कथन आदि जो कुछ देखा और सुना था, वह आदिसे अन्त तक का सब वृतान्त पण्डितजीसे कह सुनाया. इन सब बातोंको सुनकर घबराया हुआ पण्डित कहने लगा, .." हे छात्र ! अब इस प्रकारके संकटसे अपने प्राणों की रक्षा कैसे होगी ?" छात्र के रूपमें रहे हुए विक्रमादित्यने कहा, "हमें डरना नहीं चाहिजे, यहाँ पर कुछ न कुछ उपाय करना ही चाहिए. विपत्ति में कायर व्यक्ति घबराते हैं; बुद्धिमान व्यक्ति कदापि नहीं 'डरते. क्यों कि हरेक प्राणीने अपनी पूर्व अवस्था में जो शुभ या अशुभ कर्म किया है, उसके फलका भोग करना ही पडता हैं, इस में कोई संदेह नहीं.. आपको आपकी पत्नीका चरित्र जानने की इच्छा हो तो, उस वृक्ष पर मैं तुम्हें पहूँचा दूंगा और उस वृक्ष पर गुप्त हो कर बैठ जाना. मैं वेश बदला दूंगा ताकि आप सब हाल खूद देख सकोगे." - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust