________________ 271. साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित किया जाय ? महाराजा को मन ही मन कई विचार आ गये. मृत्यु का भय किसकों नही हैं ? परन्तु पुनः साहस और धैर्य को धारण कर महाराजाने मनमें निश्चय किया; "यह बेचारी ब्राह्मणी क्या करेगी? मैं इस प्रकार कार्य करुंगा जिससे सब सुखी हो जायेंगे. क्योंकि उद्यम, साहस, धर्य, बल, बुद्धि और पराक्रम ये 'छ' जिस के पास हैं, उसका देव भी कुछ नहीं कर सकते." ... कोई पर्वत के शिखर पर चढ़े अथवा समुद्र लाँघ जाय, पाताल में चला जाय परंतु स्वयं के किये हुए कर्म के अनुसार-विधिसे कपाल में जो लिखा गया है, उस का फल प्राणीओं को भोगना ही पड़ेगा.. और कहा भी हैं'सूर्य उदित पश्चिम में होवे-अग्नि किसी को नही दहे सभी असंभव हो सकते हैं-किन्तु कर्म यह अटल रहे.' यदि सूर्य पश्चिम दिशामें उदित होने लगे. पर्वत के शिखर पर यदि कमल विकसित होवे, मेरु पर्वत चलने लगे, अग्नि शीतल हो जाय, फिर भी भावि होनेवाली कर्म की रेखा बदल नहीं सकती हैं." यह सब विचार कर महाराजा विक्रमादित्य देवी का मन्दिर देख कर पहले ही वृक्ष पर चढ़ने के लिये वहाँ से चल दिया. वहाँ से आकर वृक्ष पर चढ़ कर वह चुपचाप बैठ गया. इधर उमादेवी भी वृक्ष . + उदयति यदि भानुः पश्चिमायां दिशायां, .., 'विकसति यदि पद्म पर्वताग्रे शिलायाम्, प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वह्नि- .. स्तदपि न चलतीयं भाविनी कर्मरेखा. / सर्ग 9/320 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust