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________________ 7 विक्रम चरित्र 270 m inlanannini पूजन क्यों नहीं कर रही हो? इधर उधर के बहाने बताकर तुम समय बीता रही हो.", - उमादेवीने कहा, "अभीतक सब सामग्री प्राप्त नहीं हुई थी। परन्तु भाग्य से अब मिल गई है; बत्तीस लक्षणों को धारण करनेवाले मनोहर चौसठ छात्र पूरे हो गये हैं. एक मेग पति है. एक पृथक पृथक योगिनीयों का और मेरे पति है वह तुम्हें चढ़ा दूँगी. अब आप क्रोधित न होवे. अब आप स्पष्ट रूपसे बलिदान की विधि बतावें." क्षेत्रपालने कहा, "कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को एकान्तमें विद्यार्थीओंके लिये चौसठ मण्डल और एक अलग . मण्डल अपने पति के लिए बनवाना. उन सब के बैठने के लिए पैंसठ विशाल आसन करना. भोजन करने के लिये उतने ही पक्वान्न बनाना और पैंसठ पात्र लाना. विद्यार्थीयों को गले में पहनाने के लिये करीर के पुष्प की पैंसठ मालायें बनवाना. उन सब के सिरमें पृथक् पृथक् तिलक करके हाथों में रक्षा. सूत्र बांधकरके उन लोगों के उपर अक्षत डाल देना. यह सब करने के बाद जब जलकी तुम कल्पना करोगी तब हम लोग उन लोगों का भक्षण करेंगे." उमादेवीने मनमें सोचा, "मैं कपट करके पति के पाससे पहले सब सामग्री मंगवा लू गी." फिर प्रगटमें बोली–दोंनो हाथ जोड़कर . क्षेत्रपालको कहा, "तुम्हारे कथनानुसार सब कार्य मैं शीघ्र कर लूंगी." . ये सब बातें सुनकर विक्रमादित्य दंग हो गया-चमत्कृत हो मनम . सोचने लगा, "इस संसार में स्त्रीयाँ क्या क्या करती है ? यह ब्राह्मणी न जाने क्या करेगी; अरेरे, यह सभी छात्रोंमें मेरा भी मृत्यु होगा, अब क्या P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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