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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित . 269 हए अपने स्वामि की शय्याके उपर पूर्वकी तरह तीन वार दण्ड घुमा-' कर अपने स्थान पर जाकर सो गई. राजा भी अपने स्थान पर सो गया. . ___ यह सब वृतान्त देख कर हृदयमें कुतूहल-अचम्भा करता हुभा राजा विक्रमादित्य प्रातःकाल उठ कर पुनः पूर्वकी तरह अपना पाठ पढ़ने लगा. पढने लगा. . .. . . उमादेवीका देवसभामें जाना- ... : दूसरे दिन राजा वृक्षकी गुहा-कंदरामें गुप्त होकर बैठ गया. उमादेवी पूर्व दिनकी तरह ही सब दण्ड भ्रमणादि कार्य करके उसी वृक्ष पर चढ कर दक्षिण दिशाको चली गई. पर्वत, नदी, वन भादिका उलंघन करती हुई वह उमादेवी अनेक उद्यानसे शोभायमान जम्बू द्वीपमें पहुँची. वहाँ वृक्षको स्थापित करके नीचे उतर कर देवीके प्रासादमें देवीको प्रणाम करनेके लिये गई. राजा भी अग्निवैतालकी सहायतासे अदृश्य रूप होकर उसके पीछे पीछे गया और सब वृतान्त देखने लगा. वहाँ सीकोत्तरी के पास चोसठ योगिनी और बावन क्षेत्रपाल आदि अनेक देवता आकर अपने स्थान बैठ गये. इस के बाद उमादेवी ने सीकोत्तरी देवी व योगिनी और क्षेत्रपालोंको नत मस्तक करके सभी को पृथक् पृथक् प्रणाम किया. तब सीकोत्तरी आदि देवियोंने कहा, "हे उमादेवी! अब इस सभा को अलंकृत करो." तब उमादेवी वहाँ सभामें बैठ गई. तब क्षेत्रपालने क्रोधित होकर उमादेवी से कहा, " मुझ से मनोहर . . . 'सर्वरस'दण्ड लेकर तुम चली गई. परन्तु पूर्व कथनानुसार अब तक मेरा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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