________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जन विजय संयोजित 267 उमादेवीका मन नहीं जान सका. क्यों कि समुद्रका पार प्राप्त किया जा सकता है, आकाशके नक्षत्रोंकी गणना हो सकती है, किन्तु नारीचरित्रका सहज ही में यथातथ्य ज्ञान प्राप्त कर लेना आसान नहीं, अर्थात् छल-दम्भ करनेवाली- स्त्रीका कोई पार नहीं पा सकता है किसीने सच ही सुनाया है "नारी बदन सुहावना, पीठी बोली नार; - जो नर नारी वश हुआ, भंग हुआ घरबार.." एक दिन जब प्रहर रात बीत गई, पंडितके साथ साथ सब छात्र सो गये. तब उमादेवीने एक दण्ड लिया. इधर राजा विक्रमादित्य . जो इसका चरित्र देखने ही आया था; वह चुपचाप उठ कर उसके चरित्र को जानने के लिये सावधानीसे एकान्तमें रह कर देखने लगा. AAR JI महाराजा विक्रम सावधामीसे उमादेवीका चरित्र देख रहे हैं. चित्र नं. 14 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust