________________ um है कि पुनः सोही विक्रम चरित्र पूजारीने कहा, " यहाँ सोमशर्मा नामके व्यक्ति अनेक हैं. किसके विषयमें आप पूछ रहे हैं ?" राजाने कहा, " जिसकी स्त्रीका नाम उमादेवी है. उसके विषयमें मैं पूछ रहा हूँ." . 1. तब उसने कहा, " सोमशर्मा ब्राह्मण तिरसठ विद्यार्थी ओंको अपने तरफसे भोजन देकर विना कुछ धन लिये ही विद्या पढाता है, भीमपाटकमें उसका मनोहर मकान है." इस प्रकार सोमशर्मा के घरका संपूर्ण पता लगाकर राजा विक्रमादित्य लेखनी तथा पाटी लेकर छात्रके वेशमें वहाँसे चला. रूप परावर्तनी विद्याके बलसे अटारह वर्षका अपना रूप बनाकर नगरकी शोभा देखता हुआ सोमशर्मा के घर समीप पहुँचा. श्री सोमशर्मासे परिचय. जब विद्याथीं वेशमें राजा पंडित सोमशर्मा को प्रणाम करके खड़ा हो गया, तब सोमशर्माने पूछा, "तुम कौन हो और किस प्रयोजनसे यहाँ आये हो?" तब उस छात्र रूपधारी राजाने कहा, "आपका नाम सुनकर आपसे विद्याध्ययन करने के लिये ही आया हूँ.'' ब्राह्मणने प्रसन्न होकर कहा, “यथेच्छ पढो. यहाँ द्रव्य की भी कोई आवश्यकता नहीं है." - इस प्रकार उमादेवी का चरित्र जानने के लिये राजा विक्रमादित्य बड़ी सावधानीसे छात्र रूपमें वहाँ रहने लगा. उमादेवी मधुर स्वरसे बोलनेवाली तथा वस्त्रसे अपने मुखको सतत् ढका हुआ रखती हुई अपने पतिकी सेवा करती थी. उमादेवीके चरित्र देखनेके लिये प्रयत्न करने पर भी वह विक्रम-छात्र वस्त्रसे मुख आच्छादित रहनेके कारण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust