________________ MVN साहित्यप्रेमी मुनि निरअनविजय संयोजित फल पुष्पादि शोभित लताओंसे, निर्मल जलसे भरे हुए जलाशयों से, हंस आदि अनेक पक्षियोंके मधुर स्वरों से, स्वच्छ जलवाले सातसौ सरोवरोंसे तथा श्री जिनेश्वरके प्रासादों से युक्त उस श्री सोपारक नगर को देखा. श्री शत्रुञ्जय महातीर्थ की तलहट्टी में स्थित उस नगर का महात्म्य हीनबुद्धि मनुष्य क्या कह सक्ते है ? जिस स्थान की मिट्टी के स्पर्श मात्र से ही मनुष्य आदि सकल प्राणी मोक्ष, का लाभ प्राप्त करते हैं. श्री जिन मंदिर में प्रभू पूजा . इसके बाद नगरकी शोभा देखता हुआ महाराजा विक्रमादित्य श्रीआदिनाथ प्रभुके मन्दिर में गया. नाना प्रकारके पुष्पों से प्रभु की पूजा की और भक्तिभावसे इस प्रकार स्तुति करने लगा, "देवता तथा दानव और राजाओं से जिनका चरण सदा पूजित एवं वन्दित हैं, ऐसे श्री सोपारक नगर की वाटिका के भूषणरूप श्रीऋषभदेव प्रभुकी मैं स्तुति करता हूँ. हे प्रभो ! तेरे चरणकमलकी सेवा जो करते है, वे शीघ्र ही परमानन्दको प्राप्त करते है, हे प्रभो ! तुम जिसके हृदय में वास करते हो उसके पापरूपी अन्धकार को नष्ट कर देते हो. हे आदिनाथ प्रभु ! आज आपके दर्शन कर मैं कृतार्थ हो गया हूँ. हे नाभि राजाके नन्दन !' सुवर्ण के समान शरीर की कान्ति धारण करनेवाले ! अपने चरण के समीप मुझे स्थान दो. अनन्त संसार में भ्रमण करता हुआ तथा अनेक दुःख को प्राप्त कर के मैंने भाग्य से ही आज तुमको प्राप्त किये है." इस प्रकार स्तुति करने के बाद राजाने वहाँके पूजारी से पूछा, “यहाँ सोमशर्मा नामके ब्राह्मणका घर कहाँ है ?" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust