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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जन विजय संयोजित 263 पेटी के साथ साथ उसी राजकुमारी लक्ष्मीवती को भी लाये तथा बादमें सिंह राजा के द्वारा उसके साथ विवाह आदि करने का रोचक हाल पढ़ ही गये हैं. अब आगे महाराजा विक्रमादित्य का नागदमनी के आदेश के अनुसार दूसरे आदेश को पालन करने हेतु श्रीसेापारक नगर में जाना तथा सोमशर्मा पंडितकी पत्नी उमादेवी का चरीत्र देखना आदि रोमांचकारी हाल आगामी प्रकरण में पढ़े. किसी भी व्यक्ति द्वारा सफलता प्राप्त करने में केवल उसकी बुद्धिमानी, शक्ति आदि पर निर्मर नहीं. पर उसके कई पूर्व जन्मसंचित किये पुण्य तथा वर्तमान काल के उपकार या पुण्य कार्य के सहारे की भी आवश्यकता होती है. अन्यथा सब कार्योमें सफलता पाना महान् दुष्कर है. किसीने ठीक ही ललकारा हैं-. .. 1 "राज्य भोग सपत्ति मकुल, विद्या रूप विज्ञान; 1. अधिक आयू आरोग्यता, प्रगट धर्म फल जान." .. जो पराये काम आता, धन्य है जगमें बही / . द्रव्य ही को जोडकर, कोई सुयश पाता नहीं // 1 // नर जन्म उस का व्यर्थ है, जो प्रेम का भूखा नहीं। जो प्रेम का करता निरादा, सुख नहीं पाता कहीं // 2 // पारस में और संतमें, बड़ा हो अंबर जान / एक लोहा कंचन करे, एक करे आप समान // 3 / / P.P. Ac. Gunrathasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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