SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 262 विक्रम चरित्र स्थित पुष्प दोनों हाथों को सुवासित करता है. ठीक उसी प्रकार उदार विचारवाले अनुकुल या प्रतिकुल में समान ही व्यवहार रखते हैं. . इस प्रकार रत्नं पेटी के साथ लक्ष्मीवती को लेकर महाराजा . विक्रमादित्य उज्जयिनीपुरी के मनोहर उद्यानमें पहुँचे. बहुत बड़े उत्सवके साथ वहाँ से नगर प्रवेशकर राजमहल गये. उस नवीन रानी लक्ष्मीवती के लिये एक शोभा सम्पन्न महलमें रहने के लिये अलग व्यवस्था कर दी गई. . नागदमनी को बुलाकर वह रत्न की पेटी दे दी और कहा, " मैंने तुम्हारे आदेश को पुरा कर दिया है अब तुम पांच दण्डवाला छत्र बनाओ." नागदमनी ने महाराजा विक्रमादित्य से उत्तर में कहा, " हे राजन् ! केवल इन रत्नो से पाँच दंड वाला छत्र नहीं बन सकता. ये रत्न तो केवल उसकी जाली ही बनाने के काममें आयेंगे. इस लिये अब आप मेरे दूसरे आदेश को पूरा करें, ताकि आप शीघ्र ही उस पाँच . दंडवाले छत्र को देख कर अपनी इच्छा पूर्ण कर सको.” / महाराजा विक्रमादित्य ने नागदमनी से कहा, "तुम शीघ्र ही अपना दूसरा आदेश भी सुनाओ. चाहे वह आदेश कठिन हो या सरल मैं उसे पूर्ण कर अपने मनकी अभिलाषा पूर्ण करना चाहता हूँ. अतः तुम मुझे पाँच दंड' शीघ्र ही प्राप्त हो वैसा उपाय करा." .. सामान पाठक गण! आपने अपने चरीत्र नायक महाराजा विक्रमादित्य द्वारा अपनी इच्छा पाँच दंड वाले छत्र की प्राप्ति के लिए नागदमनी के आदेशानुसार ताम्रलिप्ति नगरी जाकर चंद्रराजा की पुत्री के महल से रत्न P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy