________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 261 महाराजा विक्रमादित्यने कहा, "हे राजन् ! इसमें तुम्हारा कुछ भी अपराध नहीं है, यह सब अजान से ही हुआ है. इस के लिये दुःस्त्र न करो, मैं अपने कार्य के लिये ताम्रलिप्ति नगरीमें गया था. वहाँ से रत्नसे भरी पेटी तथा इस कन्या को ले आया हूँ." फिर बाद में सिंह राजाने सब समाचार जान करके महाराजा विक्रमादित्य का उस कन्या से पाणिग्रहण का उत्सव विस्तार से कराया. NEET IN कार POTA MINKS VAA स Cl/KETC MUS SENTERTA - 2305 "6.8M 0 - KUMS REETr 3 Etrus चित्र नं. 13. - महाराजा उस वेश्यासे रत्न पेटी ले रहे है. तदुपरान्त वेश्या को अभयदान दे कर उससे रत्न पेटी लेकर, उस लक्ष्मीवती प्रिया के साथ अपने नगर प्रति महाराजा विक्रमादित्यने चल दिया. सच है-अपने और पराये का विचार क्षुद्रबुद्धिवाले करते है। उदार पुरुष तो समस्त पृथ्वी को अपना कुटुम्ब समझते हैं. जैसे अंजलिमें P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust