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________________ कर रही थी वहां अघटकुमार आता है. महाराजा वहां आकर छुप जाते है, रुदन का प्रयोजन अघटकुमार पूछता है, 'राजा कल मरजानेवाला है.' देवी कहती हैं, अघटकुमार महाराजा को बचाने का उपाय पूछता है, देवी उन को उस का पुत्र का बलिदान देने को कहेती है. और अघटकुमार अपने पुत्र का बलिदान देकर ही रहता है, बलिदान देकर अघटकुमार चला जाता है, बाद में महाराजा वहां आकर देवी के सन्मुख मरने को तैयार होते है, देवी प्रगट होकर महाराजा की इच्छा पूर्ण करती है. बच्चा को सजीवन करती हैं. दूसरे दिन महाराजा अघटकुमार को सहकुटुंब अपने वहां बुलाते है अपनी पत्नी के साथ अघटकुमार महाराजा के वहां जाता हैं. महाराजा बच्चे के लिये पूछते है, अघटकुमार ज्यों त्यों जवाब देता है. अंत में घटस्फोट होता है. वफादार अघटकुमार को महाराजा विक्रमने जागीरी दी. वह अपने राज में गया, पिताका वारसा प्राप्त कर न्यायी राजा होता है महाराजा . विक्रम और रूपचन्द्र की परस्पर प्रीति बढती है. सर्ग ग्यराहवा प्रकरण 56 से 64 ..................... पृ. 457 से 593 प्रकरण 56 . . . . . . . . . . . प. 457 से 468 महाराजा विक्रमादित्य का पूर्वभव श्रवण व प्रायश्चित् महाराजा विक्रमादित्यने आचार्य श्रीसिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी से अपना पूर्व भव के लिये पूछा, आचार्य श्रीने महाराजा का पूर्व भव कहा साथ ही साथ भट्टमात्र, अग्निवैताल और खपर के संबंध में भी कहा, और अंत में पापका प्रायश्चित लेने की आवश्यकता बताई, और हरेक जीवको प्रायश्चित P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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