________________ mamin विक्रम चरित्र ___यह सुन कर राजाने कहा, "हे बालिके !. तुम ऐसा क्यों बोलती हो ? मैं सतत न्यायमार्ग से ही प्रजा और पृथ्वी का पालन कर रहा हूँ ?" कन्याने कहा, “क्या कर्तव्य या अकर्तव्यका विचार, नहीं * करना इसीको आप न्यायमार्ग मानते हो?" राजाने पूछा, "तुम कौन हो ? किस की पुत्री हो और कहाँ जा रही हो?" - इस पर कन्याने कहा, " बहुत बोलने से मुझे प्रयोजन नहीं. ताम्रलिप्ति नगर से जो पुरुष मुझे यहाँ ले लाया, उसे छोड़ कर मैं दूसरे से कदापि विवाह नहीं करूँगी." ___ इस पर राजाने पूछा, "वह कहाँ है ? अथवा अभी वह कहाँ गया है ?" कन्याने कहा, "वह इसी नगर में भोजन सामग्री लेने गया था, इसी बीच यह वेश्या मुझे छल कर के नगर में ले आई, अतः अब उस पुरुष का पता मुझे नहीं हैं; अर्थात उसको कहीं देखती नही हूँ. उसके वियोगमें मैं बडी दुःखी हूं." - यह सुन कर राजाने कहा, "तुम शरीर को क्यों व्यर्थ हो भस्म करना चाहती हो ? जीवन्त नर मनोइच्छित को शीघ्र प्राप्त कर सकते हैं, इसी लिये हे बालिके ! इस नगरमें तुम अपने अभिलषित पुरुष को पहचान कर उसका स्वीकार करो." P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak-Trust