________________ 256 . ___ ..विक्रम चरित्र www.wwwwwwwwwwwww यदि तुम जबरदस्ती मुझको जिस किसी मनुष्यके पास छोर दोगी तो मैं यहाँके राजाके पास जाकर इसके लिये फरियाद करूँगी.. * जो पुरुष मुझे इस नगरमें लाया है उसीके साथ मैं विवाह करुंगी, अन्य किसी धनिकके साथ भी में विवाह करना कदापि नहीं चाहती हूं." यह सब बात सुनकर डरती हुई वेश्या राजा के पास जाकर बोली, "मेरी कन्या पति के वियोग से जल कर मरना चाहती है." राजाने कहा, "स्त्रियों को जल कर मरना उचित नहीं. चितामें जल कर आत्महत्या करने से जीव दुर्गति को प्राप्त करता. है; यदि पति के मोह से स्त्री चिता जलना चाहती है, तो उसको कौन रोक सकता है।" - इस प्रकार राजा की आज्ञा प्राप्त करके मनमें प्रसन्न हो कर वेश्या सोचने लगी, "यदि वह कुमारी चितामें जल कर मरेगी तो रत्न से भरी हुई पेटी और सांढनी भाग्यसंयोग से मेरे घरमें रह जायगी." इस प्रकार अपने मनमें दुष्ट विचार करती हुई वह वेश्या राजभवन से अपने धर आई . जगत में दिखाई दे रहा है कि तृणसे जीवन निर्वाह करने वाले मृग का शत्रु शिकारी, जल मात्रसे निर्वाह करनेवाली मछलियों का शत्रु मच्छीमार, सन्तोष से रहनेवाले सज्जन का शत्रु दुर्जन, ये सब बिना किसी कारण के ही शत्रु होते है। + __ + मृगमीनसज्जनानां तृणजल सन्तोषविहित वृत्तीनाम् / लुब्धक धीवरपिशुना निष्कारण वैरिणा. जगति // स. 9/213 / / P.P.AC.Guntatnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust