________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित इस लिये कहा है कि तुलाका दण्डमान और दुर्जनका . व्यवहार समान ही हैं; क्यों कि ये दोनों थोडेमें ही ऊपर जाते हैं और थोडे में ही नीचे हो जाते हैं. किसीने ठीक कहा है " तानसेनकी तानमें, सब तान गुलतान, . आप आपकी तानमें, गद्धा भी मस्तान. " .. इधर कोतवाल के पुत्र के कार्य झरोखे से देखकर अपने पूर्व कर्म की निन्दा करती हुई राजकुमारी सोचने लगी, “एक यह भी पुरुष है, जो अपने इस साधारण कार्य पर भी इस प्रकार अभिमान प्रकट करता हुआ अपने बाहुबल का गर्व कर रहा है. कहाँ यह अभिमानी व्यक्ति और कहाँ.. वह पहला पुरुष जिसने एक एक बाण में सिंह तथा वाघ को मार कर भी मुझको कहा था कि 'किसो के आगे यह वृत्तांत कहना नहीं.' अपने गुणों का वर्णन करना और न करना इन दोनों कारणों से नीच जौर उत्तम व्यक्ति का अन्तर जाना जा सकता हैं, जैसे कि काक और हंसमें सियाल और सिंहमें, अश्व और गध्धेमें, देव और दैत्यमें.. अमृत और जलमें, बबूल और आम्रमें, राजा और सेवकमें, सरोवर और सागरमें. राहू और चन्द्र में, बकरी और हाथी में, दिन और रात्रिमें, ग्राम और नगरमें, तेल और घृतमें, इत्यादि वस्तुओं में जितना अन्तर है, ठीक उतना ही इस पुरुष में और उस पुरुष में है." - मन ही मन ये सब बातें सोचकर वह राजकुमारी वेश्याके पास जाकर कहने लगी, “तुम मुझको जिस किसी मनुष्यको क्यों देना चाहती हो? यदि पहलेका देखा हुआ पुरुष मुझको नहीं मिलेगा तो मैं शीघ्र ही चितामें प्रवेश कर मर बाऊंगी. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust