________________ साहित्यप्रेभी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 253 रत्नकी पेटी और सांढनी को छोड़ कर राजा नगर में भोजन सामग्री लेने के लिये गया. राजकन्या और रत्नपेटी का हरण इधर उस नगर में रहनेवाली रूपश्री नामकी नगरकी नायिका वेश्या उस उद्यान में आई, पेटी तथा सांढनी के साथ राजकुमारी को लेकर वह अपने घर चली आयी। वह वेश्या रूपश्री मनमें सोचने लगी, "यह कन्या अत्यन्त रूपवती है, इस लिये अब इस के द्वारा मेरे घरमें हमेशां राजकुमार और बड़े बड़े धनीलोग आयेंगे." वह वेश्या उस राजकुमारीको कहने लगी, "मेरे घरमें आये हुए पुरुषों को तुम प्रसन्न किया करो. यहाँ हम लोगों को राजाकी स्त्रियों से भी अधिक सुख होता है." यह सुन कर राजकुमारी कहने लगी, ..." मैं दुर्गति देनेवाला तुम्हारा धर्म कदापि स्वीकार नहीं करूँगी. क्यों कि :'मदिरा मांस खास भोजन है, जिस कुलटा नारी जनका, नही ठिकाना कहीं कुच्छ हैं, जिस अभागिनी तन मनका; कौन महान पुरुष चाहेगा, उस वेश्या संग वास कभी, वेश्या के संग रहनेवाले, होते रिट नट घूर्त सभी.' चरपुरुष, भट, चोर, दास, नट, विट, आदि से चुम्बित वेश्या के अधर पल्लव का कौन कुलीनपुरुष चुम्बन करता है? + + कथुम्बति कुलपुरुषो वेश्याधरपल्लवं मनोज्ञमपि / / चारभटचोर चेटक. नटविट निष्ठीवन शरावम् // स. 9/183 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust