SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 222 की / विक्रम चरित्र "मैं हूँ अकेला, कोई नहीं है, मेरा साधन जीवन का। जंगल में सोये सिंहो को, कभी न होता भय तन का". hd इस जगतमें जैसे अपनी शक्ति को विना प्रगट किये शक्तिवान मनुष्य को लोगों से तिरस्कार प्राप्त होता है, क्यों कि वही अग्नि, काष्ट में भी होते हुओ उस्का लोग तिरस्कार करते हैं किन्तु प्रगट--ज्वलित अग्नि का कोई लोग तिरस्कार नही कर सकते. + .PV MMUSEU KAISE A KUT ANAM INNI JAN CON रूपश्री वेश्या राजकुमारी के पास आती है. और अपने यहां ले जाने का प्रयत्न करती है . चि.नं. 1. इस के बाद वहाँ से सांढनी पर बैठ कर राजकुमारी के साथ राजा लक्ष्मीपुर के उद्यान में पहुँचा। वहाँ नदीके तट पर राजकन्या, + अप्रगटीकृतशक्तिः शक्तोऽपि जनात्तिरस्कियां लभते / निघसन्नन्तरुणि लङ्घयो वहिन तु ज्वलितः // स. 9/176 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy