________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 249 ..... उन्मार्ग में चलनेसे वृक्षकी अस्तव्यस्त कंटीली डालियोंसे पीड़ित होकर वह कन्या बोली, "धीरे धीरे चलो. क्यों कि मेरे शरीरमें वृक्षकी शाखाओंसे पीडा हो रही है." - . . विक्रमादित्यने कहा, 'यदि वृक्षके कण्टकोंसे पीडित होती हो तो मेरे जैसे घतकारके हाथमें पड़ कर क्या सहन कर सकोगी?' यह सुनकर राजकुमारो मन ही मन अत्यन्त दुःखित होती हुई चुप रह गई... बहुत तेजगति से चलनेके कारण शीघ्र ही राजा विक्रमादित्य अपने राज्यकी सीमामें पहुँच गये. पर संध्या समय निकट होने से उन्होंने एक नदीके तट पर अपनी साँढनीको बैठाकर दोनों नीचे उतरे. राजाने उस राजकुमारीसे कहा, "हे राजकुमारी ! मैं अव सोता. हू. तू मेरे पाव दबा. " .... KNO HWAR . महाराजा विक्रम सो गये ओर राजकुमारी पांव दबाने लगी. चि नं. 7 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust