________________ 247 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित कर, लंबे वांसकी सहायतासे राजमहलमें आकर राजकुमारीसे कहा, " हे राजकुमारी ! शीघ्र आओ और सांढनी पर बैठकर चलो. समय मत बिताओ अब यहाँसे चलेगें." तब राजकुमारीने कहा, 'हे राजन् ! पहले मेरी रत्नपेटीको शीघ्र निचे उतारो, बाद मैं आऊँगी." तब भीभने उस प्रकार किया. रत्नपेटीका हरण जब वह लक्ष्मीवतीको लेकर निचे उतरने लगा तब विक्रमादित्य विचारने लगा, " यह भीम रत्नसे भरी पेटी और राजकन्याको लेकर शीघ्र चला जायगा." ऐसा सोचकर अदृश्य रूपसे अग्निवैतालकी सहायतासे बड़ी शीघ्रतासे विक्रमादित्यने राजकन्याके मस्तक परका -वस्त्रहरण कर लिया. बादमें लज्जाके कारण जब राजकन्यां दूसरा वस्त्र लानेके लिये महलमें गई तबतक राजा विक्रमादित्यने अग्निवेतालकी सहायतासे भीमको उठा कर दूसरे देशमें रखवाया और स्वयं उसके स्थान पर खड़ा हो गया. जब कन्या दूसरा वस्र ओड़ आई तब . उसको सांढनी पर चढ़ाकर पेटीके साथ साथ राजा विक्रमने चहाँसे चल दिया.. सांढनीको उज्जयिनीकी ओर जाते हुए देखकर राजकुमारीने कहा, "हे स्वामिन् ! पूर्व दिशाको छोडकर दक्षिण दिशा में क्यों जा रहे हो ?" / तब विक्रमादित्यने कहा, "भीलोंकी वस्तीमें भीमपुर नामका एक गाँव है; वहाँ पर अनेक प्रकारके नट, धूर्त आदि रहते हैं. चतुरंग नामके भीलके घर एक दिन मैं गया था. वहाँ जाकर एक कन्या Jun Gun Aaradhak Trust P.P.Ac. Gunratnasuri M.S.