________________ - 1246 विक्रम चरित्र कार्य यहाँ अवश्यमेव सिद्ध हो जायगा. क्योंकि इस प्रकारका नगर, "राजा, धनाढय व्यक्ति आदि के देखने से तथा हाथी, अश्व, छत्र, चामर आदि के देखने से और शुभ-मनोहर शब्द सुनने से कार्य सिद्ध होता है, एसा शुकन शास्त्रोमें कहा गया है." ऐसा विचार करते हुए विक्रमादित्य उद्यानमें भोजन तथा विश्राम कर के नगर के द्वार पर आये. स्थान स्थान पर हाथी, अश्व और गगनचुम्बी हवेलियों को देखता हुआ स्वयं राजा अदृश्य शरीर हो कर नगर के मध्यमें घूमने लगे. इधर राजा चन्द्र भी सब लोगों के साथ प्रसन्तापूर्वक संध्याकालमें अपने अपने स्थान पर आये. चन्द्र राजाकी कन्या लक्ष्मीवतीने अपने राजमहल की सातवी मंजिलमें जा कर, नगरमें से श्रेष्ठ नर्तकियों को बुला कर मनोहर आलाप और संगीत का सुंदर नृत्य कराया. नृत्य चल रहा था ; राजपुत्री सुखपूर्वक सुन रही थी, उस समय विक्रम महाराजा अदृश्य रूपसे नगरमें घूमते धूमते वहाँ आये और अदृश्य रूपसे राजमहल की सातवी मंजिल पर जा कर प्रसन्नतापूर्वक मनोहर नृत्य देखने लगे. बहुत रात्रि तक नृत्य करा कर तथा आदरपूर्वक ईनाम और तांबुल देकर नर्तकियों को बिदा कर के राजपुत्रीने द्वार बन्द करा दिये. विक्रमादित्य रत्नकीपेटी लेने के लिये महल में गुप्त रूपसे रहे थे, ११महाराजा विक्रमादित्य राजकुमारीके महलमें अदृश्य रूपमें रहे, उसी समय रात्रिमें राजकुमारीके पूर्वसंकेतानुसार भीम नामका कोई राजा प्रतिघण्टा दश कोस चलनेवाली सांढनीको राजमहलके निचे रख Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.