________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित .245 महाराजा विक्रमादित्य भी इस बाग से आकर्षित हो देखने की इच्छा से उस बाग में जा पहुँचे. वहाँ जा कर महाराजाने देखा कि वहां नगरके सभी नागरिक एकत्र होकर भोजन बना रहे हैं, यह देख महाराजाने यहाँ किसी भोज या उत्सव आदि के होने का अनुमान लगाया. पर जब महाराजाने नगर के एक व्यक्ति से इसका कारण पूछा तो उत्तर में उसने कहा, " हे भाई! हमारे नगर के महाराजा चन्द्रने बहुत सा धन खर्च करके अपने नगर को रत्नभय ही बना दिया है, नगर में बडे बडे सुन्दर महल हैं / जिसमें चित्रशाला, हाथीदांत की पुतलियाँ है जो श्वेत निर्मल जल की तरह सुशोभित होती है . चंद्रोदय के समान सफेद मोतियों की जालियां जगह जगह लगी हुई हैं . इस सब सुन्दरता के रक्षण के लिए महाराजा का आदेश है कि नगर में कोई भोजन न बनाये कारण कि भोजन बनने से नगर में धुंआ होगा और उससे नगर की सुन्दरता के नष्ट होने का भय है." बाद में उस व्यक्तिने महाराजा का अतिथीरूप में स्वागत कर, भोजन करवा कर विश्राम करने के लिए निवेदन किया. इस से राजा और भी अधिक प्रभावित हुआ. वह कहने लगा, "भोजनके बाद वृक्षों की छायामें विश्राम करके सब लोग संध्याकालमें नगरमें चले जायेंगे. हमारे इस नगरकी शोभाकी समानता लंका या अमरावती कोई भी नगर नहीं कर सकता. श्री जिनेश्वर देवों के, शिवजी के और कृष्णजी आदि देवों के सुंदर मन्दिरों के समूहों से. कैलास पर्वत के समान घवल नगर अत्यन्त शोभायमान है." :: यह सुन कर विक्रमादित्यने सोचा, " अब मेरा अभिलाषित P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust