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________________ . विक्रम चरित्र 24 भी अपने प्रण को पूरा कर आपको पंचदंडवाला छत्र प्राप्त करवाऊं. अत: आप मेरे बताये अनुसार कार्य करने का प्रयत्न करें." कह कर नागदमनीने कहा, "हे राजन! ताम्रलिप्ति एक बड़ी सुंदर नगरी है, जिसके महाराजा के महलकी तीसरी मंजिल में एक प्रकाशमान रत्नों की पेटी है; अतः उन रत्नों से पंच-दंडवाले छत्र की जाली बनानी . होगी, वैसे रत्न आप के खजाने में भी नहीं हैं, अतः आप उन्हें शीघ्र ही ले पधारें." - नागदमनी की यह बात सुन महाराजा विक्रमादित्य अपने कार्य में लग गये. आपने अपनी नगरी की रक्षा का भार अपने सुयोग्य मंत्री भट्टमात्र को सौंप कर नागदमनी के बताये अनुसार ताम्रलिप्ति नगरी की ओर प्रस्थान किया. ताम्रलिप्ति नगरमें प्रवेश रास्ते में अनेक वनों, नदियों, पहाडों और ग्रामों को पार करते हुए महाराजा विक्रमादित्य अपने केन्द्र बिन्दु नगर के निकट पहुँचे. दूर से ही महाराजा को ताम्रलिप्ति नगर बड़ा ही आकर्षित करने लगा. नगर की सीमा के पूर्व ही एक सुन्दर बाग आया जो बड़ा ही सघन एवं सुन्दर था. अगर उसे नन्दनवन कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं होगा. इस बाग में लवंग, इलायची, दाखे, ईख आदि विविध फल फूल आदि के वृक्षसमूह भी सोने में सुगंध का काम कर रहे थे. पवन को सुगन्धित शीतल लहरियों प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षिता कर देती थी. . . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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