________________ ~AM 242 FER विक्रम चरित्र Fji क्षणमें अनुरक्त-प्रेमवान, विरक्त-अप्रसन्न क्षणमें, क्रोधवान, क्षणमें क्षमावानं; इस प्रकार मोह अज्ञानवश बातबातमें कपि-बंदर के समान चंचल-विवल हो जाते है, उसके साथ प्रीति कीस काम की? ...1.417, महाराजाने देवदमनी को चौसरबाजी में तीन बार पराजित कर के उस की माता की साक्षी में बड़े उत्सव और धामधूम से विवाह-शादी। कर ली. देवदमनी के साथ महाराजा का विजय और विवाह के समाचार चारों ओर नगरीमें फैल गये, इस बात को सुनकर सब लोग आनंद मनाने लगे. नीतिकारने कहा है..'बालक से भी हित कारक-अच्छी बात का ग्रहण करना चाहिये, अमेध्य-अपवित्र वस्तुसे भी सुवर्ण निकाल लेना चाहिये, नीच व्यक्ति से भी उत्तम विद्या लेनी चाहिये और दुष्कुल-हलके कुल में से भी स्त्रीरत्न ले लेना चाहिये.२ . या महाराजाके आदेशानुसार मंत्रीगणने ध्वजा-पताको और तोरणों से सारी नगरी को सुशोभित की. स्थान स्थान पर नृत्य, गीत आदि कर उत्सव मनाया, सारी प्रजा आज आनंदसागरमें स्नान करने लगी, भाट, चारण और याचक गणको महाराजाने बहुत सा दान दिया, चारों और महाराजा की बहुत प्रशंसा होने लगी और जय जय कार हुआ. लोगों की वैसी ही बुद्धि उत्पन्न होती है, वैसी मति और वैसी ही भावना और सहायक भी वैसे ही मिल होते है, कि जैसी होनहार ...भवितव्यता होती है। 2 बालादपि हितं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम्। नीचादप्युतमा विद्या स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि // 114 / सं. 9 / 3 सा सा संपद्यते बुद्धि : सा मंति: सा च भावनी / / सहीयास्तादृशा ज्ञेया' यादृशी भवितव्यता // 117 / स; .9 / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust