________________ साहित्यप्रमा मुनि निरञ्जनविजय संयोजित खेलते खेलते छल-कपट से महाराजा नींद आती हो वैसे झोंके खाने लगे, झोंके खाते हुए राजा को देख देवदमनीने कहा, "क्या आपको नींद आती है?" तब महाराजा बोले, "आज सीकोत्तर पर्वत पर-कौतुक देखते रहने के कारण मुझको रात्रिमें निद्रा नहीं आयी, इसी लिये आलसझोंके आ रहे है." इस तरह बातें कर खेलते खेलते महाराजाने कहा, "सीकोत्तर पर्वत पर इन्द्र की सभामें सुंदर रूप धारण कर एक नर्तक गर्वसे सुंदर नृत्य करते हुए, भ्रमरको देखकर व्याकुल-चंचल हो गया." ऐसा कह कर जब राजाने फूल की माला दिखाई, तब चित्तमें व्याकुलता प्राप्त कर देवदमनी बाजीके प्रथम दाव-पाशा हार गई। क्यों कि "नदी का वेग, हाथी का कान, ध्वजाका वस्त्र इन सब के समान चित्त, धन, यौवन और आयु चंचल-अस्थिर है "+ पुनः चौसरबाजी खेलते पूर्व की तरह बातें करते हुए महा- . राजाने ताम्बुल दिखलाया, तब दूसरी बार देवदमनीने पार्शमें हार प्राप्त की, बादमें पुनः खेलते रहे और महाराजाने बातें करते हुए, जब झांझर . दिखलाया तब देवदमनी तीसरी बार भी चौसरबाजी के पारों में शीघ्र , हार गई-पराजित हो गई। - क्यों कि सच ही कहा कि . 'बहुत धनाढ्य होने पर भी चिंता से आतुर मनुष्य का चित्त __ शीघ्रतासे कार्य करते हुये अस्तवस्त-अस्थिर हो जाता है / + चलं चित्तं चलं वित्तं चलं यौवनमेव च। . चलमायुनंदीवेगगजकर्णध्वजान्तवत् // 108 // सर्ग 9 // 1 चिन्तातुरस्य मर्त्यस्य भूरिलक्ष्मीवतोऽपि च। विसंस्थुलं भवेच्चित्तं कुर्वतः कार्यमञ्चसा // 111 सर्ग 9 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust