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________________ ... 240 विक्रम चरित्र माला भेट दी; देवदमनी जब वह माला अपनी सखी को दे रही थी. उस समय बीचमें से ही अग्निवैतालने माला का हरण कर विक्रमराजा को दे दी। मनोहर आलाप और मधुर गीतो सुनकर फिर इन्द्र महाराजा आदि देवता लोग बहुत संतुष्ट हुए, तब एक श्रेष्ठ नूपुर-झांझर देवदमनी को भेट दिया, वह झांझर जब अपनी सखीको देने लगी तब उसका भी अग्निवैताल ने हरण कर राजा को दिया. देवदमनीने पुन: उत्साहपूर्ण हो कर मनोहर आलाप के साथ सुंदर नृत्य किया, वह देख इन्द्र महाराजाने पुनः प्रसन्न हो कर एक पानबिडाताम्वुल देवदमनी को दिया, वह भी अग्निवैतालने हरण कर महाराजाको दे दिया। इस प्रकार इन्द्र महाराजासे दिया हुआः 1 दिव्यमाला, 2 श्रेष्ट झांझर, 3 ताम्बुल ये तीनों वस्तुएं लेकर राजा अग्निवैतालकी सहायतासे अपने स्थान पर चला आया। निश्चित होकर महाराजा सुख शैयामें सोये, बहुत रात्रितक जागनेसे प्रभात होने पर भी आज महाराजा जागृत नहीं हुए थे, इतने में देवदमनी सज-धज कर राजसभामें आयी, तब अंगरक्षकने कहा, "अभी महाराजा सोये है." तब नौकर के द्वारा देवदमनीने महाराजा को कहा, "यह क्या तमाशा कर रहे हो! तुमने मेरे . साथ चौसरबाजी खेलने का आरंभ किया, और अभी तक निश्चिन्त हो सुखपूर्वक सो रहे हो?" "आज कुछ अधिक नींद आ गई." ऐसा कह - कर महाराजाने शीघ्र उसके साथ पूर्वकी तरह चौपटबाजी खेलने का प्रारंभ किया. ... चौसरबाजी खेलते हुये महाराजाने कहा, " तुमने मुझको जबरदस्ती से क्यों उठाया ?" - तब देवदमनीने कहा, "मेरे साथ स्पर्धा कर के क्यों सो गये?" P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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