________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित ....... 235 " वह भयानक आकृति देवकुलीकामेंसे शीघ्र बाहर आयी तो उसके पीछे पीछे मानों बड़ी सेना दिखाई देने लगी, महाराजाने उचें-स्वरसे उसको पूछा कि-आप! कौन है ? और कहाँसे आये हैं? . ___ सामनेसे अवाज आयी मैं इस नगरी को प्रतिदिन रक्षा करनेवाला क्षेत्रपाल हूँ। . महाराजाने कहा-मैं परदेशी हूँ मेरा नाम विक्रम है, यदि तुम इस नगरीके रक्षक हो तो इस समय. राजाकी रक्षा करो. _ तब ज्ञानसे सर्व हाल जानकर क्षेत्रपाल बोला कि 'इस समय राजा देवदमनी की संकट-जालमें फँसा पडा है; भाग्य से ही इस संकटमेसे राजा का छूटकारा हो जाय. राजा व्यर्थ ही उससे स्पर्धा कर रहा है, उसको देवता अथवा दैत्य-राक्षस भी जीत नहीं सकते हैं.' . 19. ., ... महाराजा-हे क्षेत्रपाल! आप एसा करो कि-जिससे राजा जित जाय, इस कष्ट से उसका छूटकारा शीघ्र ही हो जाय। . :: : क्षेत्रपाल-तुम्हारे आगे कहने से क्या लाभ ? यदि राजा बलि वमेरह देकर पूछेगा, तो सब बातें कहुँगा! : 10 महाराजा-मैं तुम्हारी बलि आदि देकर पूजा करूंगा, तुम' प्रसन्न हो कर, राजा के जय का उपाय बतालायें, तब क्षेत्रपालने राजाको पहचान कर कहा कि-हे राजन्! तुमने जो इस देवदमनी के साथ धूत-चौसरबाजी खेलने का आरंभ किया हैं, वह अच्छा नहीं किया, क्योंकि वह दुःसाध्य है! P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust