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________________ 236 विक्रम चरित्र __महाराजा-क्षेत्रपाल ! मैं तो उसके साथ चोपटबाजी. खेलने का आरंभ कर चूका 6, अब तो मैं प्रतिज्ञाभंग के, भयसे उसका त्याग नहीं कर सकता हूँ; मैं तुम को बलि दूंगा, तुम जयका कोई उपाय अभी बतलाओ। . . 181 .... क्षेत्रपाल–देवदमनीके आगे मेरा नाम नहीं लेना, क्योंकि वह देव और दैत्य सबसे दुःसाध्य है। ... महाराजा-मैं आपका नाम किसी के आगे नहीं दूंगा। क्षेत्रपाल–अनेक वृक्षोंसे व्याप्त एक सिद्धमीकोत्तरं नामका पर्वत है, वहाँ पर सिद्धसीकोत्तरी . नामक देवीका एक मनोहर मन्दिर है, जहाँ सिद्धसीकोत्तरी देवी अपने प्रभाव से " रहती हैं; इस कृष्णचतुर्दशीको रात्रिमें वहाँ इन्द्र आवेगा, चौसठ योगिनीयाँ, बावन वीर, गणाधिप, भूत, प्रेत, पिसाच, आदि अनेक प्रकार के देवता आयेंगे; वहाँ उस सभामें वह देवदमनी अद्भुत नृत्य करेगी. उस समय 'तुम जाकर गुप्त रूप से रहे कर. नृत्य . करनेके समय उसके चितको क्षोभित व्याकुल कर उसकी तीन वस्तु हरण कर नगरमें आना, बाद धूत-चौसरबाजी खेलते समय इन तीन वस्तुएँ पृथक् पृथक् दिखायेगे, तो देवताओं को भी दुःसाध्य वह देवदमनी शीघ्र तुम से पराजित हो जायगी. क्षेत्रपालते कही हुई इन सब बातों को समझकर-मनमें प्रसन्नताको धारण करते हुए; महाराजा विचारनेः लगे, कि अब मेरे सब मनोरथ सिद्ध हो गये. सका भाग्यके बिना देव, दानव या मनुष्य किसी का भी मनोरथ, शीघ्र P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust.
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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