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________________ wm साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनधिजय संयोजित 231 ___ अवंतीपति महाराजा भोजन कार्य निपटा कर देवदर्शन आदि नित्यकार्य करके संध्या समय बितने पर, जब कि निशादेवीने सारी पृथ्वी पर अपना राज्य फैला दिया था, उस समय वीर शिरोमणि विक्रम महाराजा अपने विषयमें प्रजाजन का क्या क्या अभिप्रायविचार है वह जानने के लिये नगरी में चुपचाप भ्रमण करने चले / अवंतीनगरीके चौरासी. चौटे- बाजारमें भ्रमण करते करते रात्रिमें प्रजाजन के मुखसे यह सुना कि “महाराजाने देवदमनी के साथ चोपाटबाजी-युत् खेलने का जो आरंभ किया, वह अविचारी कार्य है, क्या राज्यमें महाराजा को अच्छी शिक्षा-सलाह देनेवाला कोई मंत्री आदि नहीं है? सच ही यह चूत खेलने का आरंभ कर के महाराजाने अपनी मूर्खता प्रदर्शित की है; यह देवदमनी महान् देवी उपासक हैं, उसने तो सिकोतरी नामक देवी को सिद्ध की है, इसलिये उसको कोई पराजित नहीं कर सकता है / ". एक वृद्धने कहा कि भाई ! राजालोगो की रीति नीति विचित्र होती हैं; वे बड़े लोग कहलाते हैं। एक कविने ठीक ___ -कहा हैं ___ "राजा, जोगी, अगन, जल, इनकी उलटी रित 2 डरते रहिए. परसराम ओछी पाले मित. // " . .. अपने प्रजाजनों के मुखसे कई विचित्र बातें सुन कर मनमें कुछ खिन्न होकर महाराजा राजमहलमें आये; सुख शैया में सोये किन्तु विचारमशः बागृति अवस्था में हो रात्रि विताई P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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