________________ 230 1. 5 विक्रम चरित्र म उस देवदमनी से महाराजाने चोपाटबाजी-चौसर खेलने का आरंभ किया, खेलते खेलते समय बितने लगा. दोनों की दाव-पाशे बरोबर समान ही पड़ने लगी, महाराजा उलझनमें पड गये और मनमें विचारने लगे कि यदि यह मुझे जीत जायेगी तो जगतमें मेरी हाँसी होगी और लोक में मेरी निन्दा होगी, इसमें कोई सन्देह नहीं; इस प्रकार का विचार कर महाराजाने अग्निवैताल का स्मरण किया, शीघ्र ही अग्निवैताल हाजीर हुआ, अब महाराजा उत्साहपूर्वक बाजी खेलने लगे, मध्याह्न होने लगा और भोजन का समय बीत रहा था, . तब महामंत्री आदिने महाराजासे भोजन के लिये निवेदन किया। महामंत्री हे राजन् ! भोजन का समय हो चुका है, इसलिये आप श्रीमान् भोजन के लिये पधारिये। / महाराजा- हे मंत्री! आप सब लोक भोजन कर लिजीए; मुझ को यहाँ से उठने का अभी अवसर नहीं है। मंत्रियोंने कहा हे स्वामी! भोजन नहीं करने से आप श्रीमान् का शरीर क्षीण हो जायगा; यह समस्त पृथ्वी आप ही के आधार पर है, इत्यादि मंत्रीगण बारं बारं कहते रहे, तब पिछले पहोरमें जब एक घण्टा दिन शेष रहा तब तक महाराजा चौसर बाजी खेलते ही रहे, तदन्तर रात्रिभोजन के पाप के डर से चालु चौसर बाजी पर वस्त्र आच्छादित कर के भोजन करने के लिये उठे। मार्कण्ड महर्षिने फरमाया है, किसूर्यास्तके बाद जलको रुघिर-लोही केसमान और अन्नको मांसके समान-बराबर मार्कण्ड महर्षिने कहा है, इस लिये बुद्धिमान मनुष्य को सर्वथा रात्रि भोजन नहीं करना चाहिए / 1 'अस्तं गते दिवानाथे भापो साधरमुच्यते, बन्नं मांससमः प्रोकं मार्कण्डेम महरिया 6.9-19 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust