________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित कचरा निकाल रही थी, उससे धूल बहुत उड़ रही थीं, राजनौकरने आगे आकर उस दासी से कहा:- : नौकर-बाई! घूल मत उड़ाओ। दासी-क्यों? ___ नौकर-महाराजा अवंतीपति की सवारी इस मार्ग पर आ रही हैं, देखों! . ..'ति TOIN नौकर और दासी की बातें सुनकर देवदमनी बोली, देवदमनी-क्या! महाराजाने अपने मस्तक पर 'पंचदण्वाला छत्र" धारण किया हुआ है - // देवंदमनीके मधुर वचन सुनकर महाराजा मन ही मनविचार-उलझनमें पड़ गये, वे सोचने लगे, क्या पंचदंडवाला छत्र भी हो सकता है ? "आजतक न कहीं देखा, न कहीं सुना यह आश्चर्यकारक बात का विचार मनमें राजा करते रहे, सवारी राजमहल आ पहुँची. ' 'देवदमनीके वचन महाराजांके कानोंमें. गुंज रहे थे, क्यों कि जगतमें पूर्वे कभी नहीं सुनी हुई नयी बात कहीं सुनी जाय तो उस बातको जानने के लिये सभीका बहुत इच्छा-इन्तेजारी रहती है. महाराजा सोचते थे कि 'मुझे / / पंचदंडवाले छत्रका वृतान्त सूझमें नहीं आता। तीनों महाराजाने राजमहलमें आकर देवपूजा करके पश्चात् शीघ्र 5 . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust