________________ 222 साहित्यप्रेमी मुनि निपञ्जनविजयजी संयोजित इसपर उन चारों चोरों ने चोरी नहीं करने का नियम जिन्दगी भर के लिये राजाके समीप ले लिया / इससे वे लोग सुखी हो गये। बादमें प्रसन्न होकर राजाने उन चोरों को जीविका के लिये सम्मान पूर्वक पांच सौ गांव दे दिये / बादमें चारों चोरों ने. अपने जीवन को बदलकर धम की ओर तथा सदाचार की ओर ध्यान बढ़ाया इससे वे चोर फिर से बड़े यशस्वी तथा राजा साही ठाट-बाट भोगते हुए राज्य के मालिक बने। "जब तुम आये जगत में, जगत हँसत तुम रोय / अब करणी ऐसी करो / तुम हँसो जग रोय / / " तपागच्छीय-नानाग्रन्थ रचयिता कृष्ण सरस्वती विरुदधारक-परम पूज्य आचार्य श्री मुनि सुदरसूरीश्वर शिष्य पंडितवर्य श्री शुभशीलगणि विरचिते श्री विक्रमादित्य विक्रम चरित्र श्री शत्रुजयोद्धारकरण स्वरूप वर्णनो : ___ नामाष्टमः सर्गः समाप्तः नाना तीर्थोद्धारक-श्राबाल ब्रह्मगरी--शासन सम्राट श्री मद्विजयनेमिसूरीश्वरस्य पट्टधर कवि रत्न शास्त्र विशारद-पीयूषपाणि जैनाचार्य श्री . मद् विजयामृत सूरीश्वरस्य तृतीयशिष्य . रत्न वैयावच्चकरण दक्ष मुनि .. श्री खान्तिविजय तस्य शिष्य - मुनि निरंजनविजयेन कृतो विक्रम चरित्रस्य हिन्दी भाषायां भावानुवाद : तस्य अष्टमः सर्गः समाप्तः ॥अष्टम् सर्ग समाप्तम् // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust