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________________ विक्रमचरित्र द्वितीय--भाग 221 राजा से डर नहीं होगा, तब फिर हम लोगों की आज मृत्यु क्यों हो रही है ? इसका कारण ज्ञात नहीं होता !! उन दोनों पेटियों का मूल्य हमारे घर से ले लीजिये, जब राजा रुष्ट होता है तब लोगों का क्या क्या हरण नहीं करता ?' तब एक पेटी जो राजाने गुप्त रक्खी थीं सो पेटो सभा में लाकर हाजर की बाद में राजाने कोषाध्यक्ष से कहाकि दूसरी मणि की पेटी तुम ले आओ। तब राजा के डर से खिन्न होकर कोषाध्यक्ष ने शीघ्र ही दूसरी पेटी लाकर देदी। ___ तब राजा कहने लगाकि 'साथ साथ चोरी करने के कारण तुम लोग मेरे बान्धव ही होगये, इसलिये तुमको अब कुछ डर नहीं रहा / परन्तु तुम लोगों से एक वस्तु की याचना करता हूं।' तब चारों ने कहाकि चारी को छोड़कर दूसरी किसी भी चीन की याचना कर सकते हो। ____ तब राजाने कहाकि 'चोरी के पाप से लोग यहाँ तथा परलोक . में भी बहुत दुःख प्राप्त करते हैं। इस संसार रूपी वनमें भ्रमण करते रहते हैं / कहा भी है किः “काम न आता एक है-धीरज वृद्धि सुकम- . पर धन चोरी से वृथा-होता है सब धम / / " __ "दूसरे की चीजों के चुराने वाले की इस लोकमें व परलोकमें धर्म, धैर्य बुद्धि, इन सभी की चोरी (कमी) होजाती है / चोरी करने वाले के कुटुम्बी राजा से पकड़े जाते हैं तथा चोरी का त्याग करने से चोर भी स्वर्गको जाता है,जैसे रोहिणीया चोर स्वर्ग को गया। * अयं लोकः परोलोको धर्मो धैर्य धृतिः मतिः / मुष्णता परकीयं स्वं मुषितं सर्वमप्यदः // 1446 / / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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