________________ 218 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजयजी संयोजित कायर होने से कभी भी कार्यसिद्ध नहीं होता; क्योंकि सदाचारी, धीर,धर्म पूर्वक दीर्घ दृष्टि वाले तथा न्याय मार्ग का अनुसरण करने वाले, लक्ष्मी जाय अथवा रहे उसका सोच नहीं करते / / मैं एकाकी हूं, असहाय हूँ, कृश हूँ, परिवार रहित हूँ, इस प्रकार की चिन्तासिंह को स्वप्न में भी नहीं होती। बुद्धिमान् लोग भूतकाल की चिन्ता नहीं किया करते / भविष्य की भी चिन्ता नहीं किया करते / वेतो केवल वर्तमान की ही चिन्ता करते रहते हैं / निर्दय हृदय वाले 'चोर तो बराबर ही नगर में चोरी करते हैं / जब राजा क्रोधित होकर आपको शिक्षा देना चाहता है / इसलिये कहा है कि 'काकमें पवित्रता, जुआरी में सत्य, सर्पमें क्षमा, स्त्रियों में काम की शान्ति, "जपुसक में धैर्य, मद्य पीनेवालों में तत्व का चिन्तन, तथा राजा का मित्र होना ये सब किसने देखा है या सुना है ? अपने घर की सब सम्पत्ति राजा को देकर कहो कि 'मैं जीविका के लिये अन्यत्र जाता है; आप सेवकों के ऊपर इस प्रकार नाराज हो गये हैं जिससे अब हम लोग आपके समीप नहीं रह सकते। - स्त्री के इस चातुर्यपूर्ण सुझाव पर वह चौकीदार राजाके समीप गया और कहने लगा कि 'हे स्वामिन् आप सेवकों से असंतुष्ट हो गये हैं इसलिये मैं अब दूसरी जगह जाऊंगा।'.. राजा कहने लगा कि 'हे चौकीदार डरो नहीं चोर, लोग पकड़े 'जायं या नहीं पकड़े जायं, भले ही चोरी करते रहें, परन्तु तुमको . कोई डर नहीं, अब तुम स्वस्थ हो जाओ और माणकचौक पर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust